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मैं अपने ज़िन्दगी के शुरुआती दौर में इलाहाबाद में रहा था, हाँ वही इलाहाबाद जिसे आप प्रयागराज के नाम से जानते है जो की सिर्फ यूनिवर्सिटी और संगम के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि अपनी फुल बकैती के लिए भी उतनी ही जानी जाती है । जहाँ पर हर चौराहा का अलग ही स्वाद है,कही की चाट कही की रस्गुल्ले कही की जलेबी और ना जाने क्या क्या, शायद अगर बताने बैठूँगा तो एक किताब लिख दी जाएगी ।
जितना खूबसूरत शहर उतना ही खूबसूरत वहा की फरवरी की गुलाबी ठंड होती है ।
मौसम ऐसा जहाँ हवा भी कान के पास से निकलती है तो सरर करके आवाज़ आती है हाथों में दस्ताने और गले में मफलर और चौराहो की अड्डे बाज़ी और चाय की चुसकी बस शहर ऐसे ही स्लो मोशन में चलता है
पर ना जाने मेरी ज़िन्दगी ने स्लो मोशन से ट्रेन की स्पीड कब पकड़ ली ।
कोचिंग क्लास के खत्म होने के बाद अकसर मैं अपनी साइकिल को एक हाथ से सँभालते हुए उसके साथ पैदल-पैदल रोड तक उसे छोड़ने जाया करता था जहां से वह रिक्शा पे बैठ यूनिवर्सिटी रोड की तरफ चली जाती थी और मैं अपनी साइकिल स्टेशन की तरफ मोड़ लिया करता था ।
यह कोचिंग क्लास जो की इलाहाबाद का दिल यानी सिविल लाइन्स में थी ।
यह अब एक रूटीन बन गया था जो की कई महीनो से ऐसे ही चल रहा था । रोज़ रोज़ सिर्फ उसके साथ रिक्शा तक इसलिए जाया करता था ताकि थोड़ा सा समय उसके साथ और बिता लू ,धीरे धीरे ना जाने कब यह फीलिंग्स और स्ट्रांग होती जा रही थी ।
मेरा बारवी का बोर्ड था और उसका दसवी का दोनों के लिए साल बहुत इम्पोर्टेन्ट था लेकिन उसका क्या करें जो फीलिंग्स बढ़ती चली जा रही थी । अब मेरे लिए टेंशन और बढ़ रहा था क्योंकि एक तरफ बोर्ड की तैयारी डिस्टर्ब नहीं होनी थी और दूसरी तरफ यह जो फीलिंग्स थी वो सिर्फ मेरी तरफ से ही थी यह फिर आग दोनों जगह पे बराबर थी ।
कुछ समझ नहीं आ रहा था आगे क्या करना है कैसे पता करा जाए।
एक रात जब मैं अपनी पढाई कर रहा था बार बार मन में एक ही बात आ रही थी “शुड आय प्रोपोज़ हर ??” “आय वास् क्लुलेस्स” फिर मैंने सोचा की कल उसको बता दूंगा की “आय लाइक हर” फिर चाहे जो भी हो।
बड़ी हिम्मत करके किसी तरह रात काटी और सुबह सुबह कोचिंग के लिए निकल गया क्यूंकि स्कूल की क्लासेज खत्म हो गयी थी और प्रिपरेटरी लीव चल रही थी ।
सुबह सुबह ऐसा लग रहा था जैसे मौसम को भी पता हो की मेरे दिमाग में क्या चल रहा है काले काले बादल चारों ओर फैले हुए थे ऐसा मानो कि आज बारिश सब कुछ बहा ले जाएगी सब कुछ का तो पता नहीं लेकिन मैं घबराहट में बहा जा रहा था ।
अगर उसने मना कर दिया यह उसे पसंद नहीं आया तो, खैर अब अपने डिसिशन को सेकंड थॉट नहीं देना था । उस दिन हम दोनों की क्लासेज खत्म हुयी और हम लोग रोज कि तरह कोचिंग के बाहर फिर से मिले अब बारिश शुरू हो चुकी थी, बिलकुल झिमि झिमि शायद जिसको आप लोग डर्रिज़लिगं भी कहते है ।
हम दोनों ने चलना शुरू किया रोड की तरफ वहीं जहां से उसको रिक्शा पकड़ना था मैं एक हाथ से साइकिल सँभालते हुए उसके साथ चला जा रहा था मानो कि आज यह 200 मीटर खत्म ही नहीं हो रहे थे । अचानक से मैंने उसको बोला “चाय पियोगी”, यह दूकान वाला अच्छी चाय बनाता है । उसने मेरी तरफ देखा और बोला तुम्हे चाय कबसे पसंद आ गयी और तुमने कब इसकी चाय टेस्ट कर ली बहरहाल बारिश तेज हो चुकी थी उसने भी मना नहीं किया मुझे पता नहीं था की वह टपरी मुझे ज़िन्दगी भर याद रहने वाली है ।
अगर बोला जाए इलाहाबादी भाषा में तो माहौल पूरा सेट था,मतलब वो बड़ा और घना सा नीम का पेड़ उसके नीचे वो चाय की टपरी और कह सकते है कुदरती डिम लाइट, हाथों में चाय के कुल्हड़ और हम तीन, मैं वो और तीसरा चायवाला है ना बिल्कुल रोमांटिक सा माहौल, लेकिन सिर्फ आपके लिए क्यूंकि मेरी दिल की धड़कन तो फुल स्पीड पे चल रही थी ऐसा मानो की कोई 350 बुलेट 5 गियर पे डाल के 120 की स्पीड पे चला रहा हो अंदर से एक ही आवाज़ आ रही थी, यु कैन डू इट-२, बोल बोल जल्दी बोल फिर क्या था मैंने अपने बुलेट रुपी दिल को सेकंड गियर पे डाल के धीरे से उसको बोला “आई लव यू” । “बाप रे” मुझे अगर उस टाइम कोई काटे तो खून भी ना निकले । बोलना लाइक था और मुँह से लव निकल गया, उस पल लगा की उसको खो दिया “शिट मैन शिट” यह क्या निकल गया मुँह से, इससे अच्छा तो कुछ बोलना ही नहीं चाहिए था कम से कम दोस्ती तो बची रहती उस एक मिनट में करीब एक हज़ार थॉट दिमाग में आ गए, चाय खत्म हो चुकी थी उसने कुल्हड़ को डस्टबिन की तरफ उछाला तो ऐसा लगा की मेरी दोस्ती उड़ती हुयी डस्टबिन में जा रही थी, बिना बोले मेरी तरफ बिना देखे उसने सीधे आगे बढ़ना शुरू कर दिया , मुझे लगा की रोक के माफ़ी मांग लू लेकिन तीर तरकश से निकल चुका था। बोला हुआ शब्द और तरकश से निकला हुआ तीर कभी भी वापस नही आता और जो नुक्सान होना था वो हो चुका था। सिर्फ मैं उसकी तरफ देखता रहा उम्मीद की निगाहों से, वो रिक्शा पे बैठ के जा चुकी थी ।
जैसा की मैंने सोचा था शायद उसको बताने के बाद मेरे जीवन में कुछ सुकून आ जायेगा लेकिन सारा कुछ उल्टा ही हो गया फिर से मेरी नींद उड़ चुकी थी रात भर बस यही कशमकश में निकाल दी सुबह होते ही उसको सॉरी बोल दूंगा और कम से कम उसकी दोस्ती तो वापस मिल जाएगी ।
सुबह कोचिंग पंहुचा मन तो लग नहीं रहा था क्लास खत्म हुई और मेरी आँखें बाहर उसको ढूँढने लगी वह कही दिख नहीं रही थी । उदास सा मन लेके एक हाथ से साइकिल की हैंडल को सँभालते हुए अपने आप को कोसते हुए आगे बढ़ने लगा। अब मन बहुत भारी सा हो चुका था, नीचे देखते देखते साइकिल को बेमन से घसीट रहा था उसी रोमैनटिक नीम के पेड़ को क्रॉस कर रहा था जो की कल तक प्रेम का परायवाची था, और इस पल तक सिर्फ एक पेड़ था। अचानक से आवाज़ आयी “चाय नहीं पियोगे आज” “चाय काफी अच्छी होती है यहा की” ऐसा मानो जैसे की बस यही सुनने के लिए मेरा जन्म हुआ था । मैं उसकी तरफ़ पलटा और कुछ बोल पाता उससे पहले उसने अपने हाथ में पकड़ा हुआ कुल्हड़ मेरी तरफ बढ़ा दिया हाँ वही कुल्हड़ जिससे वो चाय पी रही थी । उस चाय का ऐसा स्वाद शायद था,इससे पहले जितनी भी चाय पी थी वह सारी एकदम से फीकी लगने लगी थी और हाँ आज बीस साल हो गए है इस बात को अब मैं सिर्फ उसके हाथ की ही चाय पीता हु ।
वह एक चाय की चुस्की ने पूरी लाइफ ही चेंज कर दी ।
~ Tale By Abhistha ~

A working professional for the past 13 years, Abhishek has developed a penchant for writing stories, poems, and quotes from early teenage. It has, now, become an integral part of his daily life. He feels that writing is a stress buster for him. You can find him on Facebook and Instagram under the title “Tale by Abhistha”.